गेहूं की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनका उपचार

नमस्कार दोस्तों
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारत का गेहूं उत्पादन में प्रमुख स्थान हैं। देश के लगभग सभी राज्यों में गेहूं की खेती की जाती है। यदि गेहूं की फसल में रोग लग जाते हैं तो इससे गेहूं के उत्पादन में काफी कमी आ जाती है। तो आज हम इसी के बारे में बात करेंगे कि यदि हमारे गेहूं की फसल में कोई भी रोग लग जाते हैं तो हम उस रोग की पहचान कैसे करेंगे और हम किस तरह से इन रोगों की रोकथाम करेंगे ताकि गेहूं उत्पादन में कोई भी कमी ना आए, तो चलिए शुरू करते हैं।

गेहूं का पीला रतुआ रोग

यह रोग बारिश से नमी वाले क्षेत्रों में गेहूं की फसल में बहुत तेजी से फैलता है ऐसे में किसान भाइयों को समय रहते प्रबंधन करना चाहिए। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार जनवरी एवं फरवरी में पीला रतुआ रोग आने की संभावना अधिक रहती है। यह कवक जनित रोग है इस रोग के लक्षण शुरुआत में पत्तियों के ऊपरी सतह पर पीले रंग की धारियां देखने को मिलती हैं जो बाद में पूरी पत्ती को ही पीला कर देती हैं और यदि हम जमीन पर देखेंगे तो पीले रंग का पाउडर जमीन पर गिरने लगता है यदि यह रोग कल्ले निकलते समय वाली अवस्था में आ जाता है तो गेहूं की फसल में बालियां नहीं निकलती है।


पीला रतुआ रोग का जैविक उपचार

किसान भाई यदि पीला रतुआ रोग कैसे बचाव के लिए जैविक उपचार अपनाना चाहते हैं तो 1 किलोग्राम तंबाकू की पत्तियों का पाउडर 20 किलोग्राम लकड़ी की राख के साथ मिलाकर बीज बुवाई से पहले खेत में छिड़काव करें।
10 लीटर गोमूत्र 2 किलो नीम की पत्तियां व ढाई सौ ग्राम लहसुन का काढ़ा बनाकर 80 से 90 लीटर पानी में मिलाकर पूरी फसल पर अच्छी तरह से छिड़काव करें।


पीला रतुवा रोग का रासायनिक उपचार

गेहूं की फसल में पीला रतुआ रोग के लक्षण दिखाई देते ही 200 मिलीलीटर प्रोपिकोनाजोल 25 ई.सी. या फिर पायराक्लॉटरोबिन प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें इसके बाद दूसरा छिडकाव 10 से 15 दिन में करें, इससे पीला रतुआ रोग से फसल को बचा सकते हैं।




गेहूं का पत्ती रतुआ या भूरा रतुआ रोग

यह कवक जनित रोग है, इस रोग से फसल हवा द्वारा संक्रमित हो जाती है। इस रोग से ग्रसित पौधों की पत्तियों में भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं जो बाद में काले हो जाते हैं। जो रोगी पत्तियां होती हैं वह जल्दी सूख जाती हैं जिससे पौधों में प्रकाश संश्लेषण की कमी हो जाती है और दाने हल्के रह जाते हैं यह रोग फसल में दिसंबर के अंतिम सप्ताह में दिखाई देने लगता है।
इस रोग से छुटकारा पाने के लिए पत्तियों में धब्बे दिखाई देने पर 0.1% प्रोपिकोनाजोल 25 ई.सी. एक या दो बार पत्तियों पर अच्छी तरह छिड़काव करें।


Krishi Tech


गेहूं का करनाल बंट रोग

यह रोग फफूंद द्वारा फैलने वाला रोग है। इसके फंगस बीज में ही पाए जाते हैं। यह नम वातावरण वाले क्षेत्रों में अधिक तेजी से फैलता है। इस रोग का संक्रमण फसल में फूल आने की अवस्था में शुरू हो जाता है लेकिन इसकी पहचान बालियों में दाना बनने के समय हो पाती है। इस रोग से रोगी पौधों में कुछ ही दाने प्रभावित होते हैं जो काले पड़ जाते हैं। जो रोगग्रस्त दाने होते हैं वह काले चूर्ण में बदल जाते हैं। यदि अधिक संक्रमण है तो पूरा दाना खोखला हो जाता है और जो संक्रमित गेहूं होता है उससे सड़ी हुई मछली के जैसी दुर्गन्ध आती है।

करनाल बंट रोग का उपचार

इस रोग की रोकथाम के लिए बीज को थाइरम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करने के पश्चात ही बोयें। रोग प्रतिरोधी किस्म को ही उगाएं। इसकी रोकथाम हेतु खड़ी फसल में प्रोपिकोनोजोल 2.5 ई.सी. 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें।


गेहूं का कंडुआ रोग

यह रोग आंतरिक रूप से संक्रमित बीजों से पैदा होता है। संक्रमित बीज ऊपर से देखने में बिल्कुल स्वस्थ दिखाई देते हैं एवं बुआई के पश्चात ही इसकी पहचान हो पाती है। रोगी पौधों की बालियों में दाने की स्थान पर रोगजनक के रोग कंड काले पाउडर के जैसे दिखाई देते हैं यह हवा में उड़कर दूसरी स्वस्थ बालियों को भी संक्रमित कर देते हैं।


कंडुआ रोग का उपचार

इस रोग से रोकथाम हेतु खेत में यदि रोगग्रस्त पौधे दिखाई देते हैं तो उनको तुरंत उखाड़ कर जला दें।

बीजों को कार्बोक्सीन 75 डब्ल्यू पी 1.5 ग्राम या फिर कार्बेंडाजिम 50 डब्ल्यू पी 1.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार करने के बाद ही बुवाई करें।


यह थे गेहूं की फसल के कुछ रोग एवं उनके उपचार जिनकी सहायता से आप गेहूं की फसल को रोग एवं बीमारियों से सुरक्षित रख सकते हैं और अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
जय जवान जय किसान

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